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सुप्रीम कोर्ट से 85 प्रतिशत विकलांग अभियुक्त को अग्रिम जमानत

सुप्रीम कोर्ट से 85 प्रतिशत विकलांग अभियुक्त को अग्रिम जमानत


नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के आरोपों से जुड़े एक मामले में 85 प्रतिशत विकलांग एक आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति अहसन्नुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, विवाद के गुण-दोष में प्रवेश किए बिना और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारी राय है कि याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत का हकदार है। यदि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे ऐसी शर्तों के अधीन तत्काल रिहा कर दिया जाएगा, जिसे ट्रायल कोर्ट/जांच एजेंसी लगाने के लिए उपयुक्त पाती है।

आरोपी के खिलाफ आरोप था कि उसने जमीन के हिस्से को बेचने के लिए एक समझौता किया और उसके बदले में 16 लाख रुपये की राशि प्राप्त की। हालांकि उसने बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया और संपत्ति को कहीं और बेच दिया।

आरोपी प्रेम सिंह की पैरवी कर रहे अधिवक्ता नमित सक्सेना ने तर्क दिया कि एफएसएल रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि आरोपियों के हस्ताक्षर जाली हैं। सक्सेना ने आगे बताया कि आरोपी 85 प्रतिशत स्थायी रूप से विकलांग है और वह गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लाभ का हकदार है।

राजस्थान सरकार के वकील ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता किसी भी तरह की अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है, क्योंकि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा है और फोरेंसिक जांच के लिए भेजे जाने के लिए अपने विशिष्ट हस्ताक्षर देने के लिए जांच अधिकारी के सामने पेश नहीं हुआ है।

सक्सेना ने कहा कि उनका मुवक्किल एक विकलांग व्यक्ति है और स्वतंत्र रूप से चलने में असमर्थ है और इसलिए वह पेश नहीं हो सका। पीठ ने कहा, यह भी बताया गया है कि क्रॉस एफआईआर में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर एफएसएल जांच के लिए भेजे गए थे और रिपोर्ट में कहा गया है कि हस्ताक्षर जाली हैं।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, यह आगे प्रदान किया जाता है कि जांच एजेंसी विकलांग व्यक्ति के खिलाफ जांच के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करेगी। यह भी निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता भी जांच में सहयोग करे। राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था।