शहर जिला कांग्रेस कमेटी भिलाई के अध्यक्ष मुकेश चंद्राकर इन दिनों अपनी एक पोस्ट को लेकर खासे चर्चा में है। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने फेसबुक अकाउंट से एक पोस्ट शेयर की है। इस पोस्ट में महाभारत के एक प्रसंग को शेयर किया गया है, इसकी पूरे भिलाई शहर में खासी चर्चा है। राजनीति हलकों में यह तलाश किया जा रहा है की आखिर ये इशारा किसकी तरफ है। मुकेश चंद्राकार प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के काफी करीबी हैं। वे दाऊ वासुदेव चंद्राकर के पुत्र लक्ष्मण चंद्राकर के दामाद भी हैं। दाऊ वासुदेव मुख्यमंत्री भूपेश के राजनीतिक गुरु रहे हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री और लक्ष्मण चंद्राकर काफी गहरे मित्र भी हैं। इस लिहाज से मुकेश भिलाई में काफी चर्चित चेहरा है। इस विधानसभा चुनाव में उन्हें भिलाई की दिनों सीटों में से किसी एक सीट पर प्रत्याशी बनाया जा सकता है। खबर है कि उन्हें भिलाई नगर सीट से उतारा जा सकता है। हालांकि इस पर फिलहाल अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। इस सीट से अभी देवेंद्र यादव विधायक हैं, जिनके घर पर पिछले दिनों ईडी ने जांच की थी। बहरहाल मुकेश समर्थक लगातार इस प्रसंग के मायने समझने की कोशिश कर रहे हैं। मुकेश ने भी अब तक खुलकर कुछ भी नहीं कहा है।
जानिए आखिर क्या कुछ प्रसंग सोशल मीडिया में शेयर किया गया…
अर्जुन को घमंड हो गया कि उससे बड़ा कोई श्रीकृष्ण भक्त नहीं है। श्रीकृष्ण भी इसको ताड़ गये।
एक दिन श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए। रास्ते में उनकी भेंट एक निर्धन ब्राह्मण से हुई। उनका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहे थे और कमर से तलवार लटक रही थी।
अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’
ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’
“आपके शत्रु कौन हैं”? अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की।
ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं। सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं।
फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा।
तब अर्जुन ने पूछा आपका तीसरा शत्रु कौन है?
वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।
चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए… उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का थोड़ा भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को। यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए।
यह देखकर अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा.. मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।
इस पूरे प्रसंग में इशारा भिलाई के एक नेता की ओर माना जा रहा है, हालांकि खुलकर बात कहीं भी सामने नहीं